मौन तपस्वी बैठा सालो से धूनी रमाए मौसम आए जाए
कभी गिरती बारिश की धार कभी पडती ओलो की मार
बैठा अचल बीत रहा समय पल पल पर तनिक न डगमगाए
करते करते इंतजार साथी भी हो गये योगी वही बैठे जहाॅ बैठा जोगी
इश्वर आए तो टूटे ध्यान अंत: मे ढूढ रहा समधान
ढक गया तन उग आई घास पर नही विचलित मन मे विश्वास
एक दिन चरण धूल से अहिल्या के राम, दिलाएगे समाधी से विराम
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