Thursday, November 24, 2016

मंजिल मिलने तक बहो

मै हॅू जीवन धार बहती हॅू पहाडो का सीना चीर जैसे स्वतंत्र विचार।
मरे राह मे अवरोध हजार पर मै बना लेती हू रास्ता मै नही सकती ठहर बहने से मेरा वास्ता।
मेरा ठहरना मुझे ही कर देगा खराब इस लिये कहती सहो मेरा वेग या दो मार्ग
इतनी मेरी ताकत पर मै भी सीधी नही बहती मुझे भी बदलने पडते है रास्ते कठिनाई रहती।
छोटी बाधा को दूर हटाती हू पर बडी बाधा से दूर हटकर निकल जाती हू ।
कई बार बाधाओ मे टूट कर बिखर हो जाती छार छार फिर सारी बूॅदो को मिला पा लेती विस्तार
सागर से मिलने तक हर बाधा पार कर बहती हू इस लिये यह सच तुम से कहती हू सब खुशी गम को सहो और मंजिल मिलने तक बहोPhoto:

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