Wednesday, November 30, 2016

कुल्हड की चाय दिल करता फिर मिल जाए

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मिट्टी के प्याले मे गरम चाय सोधीं सुगंध जी ललचाए
उस पर ठंडी का मौसम एक पीने के बाद कहें एक और पिलाए
गरीब कुम्हार बडे दिल से बनाए फेको म्ट्टिी मिट्टी मे मिल जाए
न कचरे का संकट न कूडे का ढेर ठंडी का मौसम फिर पीने मे क्यो करते देर
कुल्हड की चाय दिल करता फिर मिल जाए

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