मानवता की कराह चल पडे पतन की राह
रोज मिलता है समाचार और त हुई फिर अत्याचार की शिकार
कौन है अपराधी जो कर रहा अपराध जिसको वहशी रावण हो गया इतना याद
हम लोगो को राम पढा पढा थक गये फिर कैसे इनके कदम बहक गये
तो पाया कहाॅ ये राम पढे ये तो झाड झंखाड की तरह बढे
इनकी तो परवरिश हुई इस प्रकार कि विष वृक्ष हो काॅटो के साथ तैयार
पूरी धरती लहूलुहान है पर इनको कहाॅ शर्म इनको राक्षस होने का अभिमान है
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