Sunday, November 27, 2016

अब छिडा गरीब की उन्नति का रण आर पार

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एक ही कश्ती के सब सवार
माना नही मिलते हमारे विचार
चलती रहती है हमारे बीच तकरार
पर हम ही नाव के खेवनहार
ले जाना हमको कश्ती को उस पार
अगर यूॅ ही लडते नाॅव डूब जाएगी बीच मजधार
करो मंथन नही इससे इनकार
पर हम भी जानते जाना किस दिशा की पहुॅचेगे पार
इस पर अगर करोगे तकरार
तो सवार ही देगे तुमको मार
ऐसा ही संसद के अंदर जनता को समझ रहे अज्ञानी बंदर
 पर ये नही जानते हमे मालूम उन्नति का द्वार
इस बार आधे सच के शिकारी होगे खुद शिकार
अब छिडा गरीब की उन्नति का रण आर पार

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