Sunday, November 27, 2016

घूमने की जगह और पेडो की छाॅव शहर से अच्छा अपना गाॅव

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ठंढ बहुत है यार बुझ गया अंगार
अभी तो रात है बडी ठंढ मे बडी जोर बजती घडी
चलो और लकडी लाए अंगार फिर सुलगाए
कपकपी के मारे चलते नही बनता ठंड के मारे पाॅव है जमता
तू इधर उधर मत देख कुछ कर है बच्चो का सवाल मर जाएगे अगर नही रक्खा ख्याल
ये साला शहर का जीवन है खराब नही जलते चूल्हे कि मिल जाए आग
चल यार चले अपने गाॅव की ओर नही मिलता खाना हो गया कमजोर
अब तो सुनते है निकल गया इनका काला धन तो हमे पालने का इनका नही करता मन
अपना गाॅव ही भला है घूमने की जगह और पेडो की छाॅव शहर से अच्छा अपना गाॅव

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