Saturday, November 19, 2016

एक हाथ गरीब की मदद को बढाए|

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बढने लगी है ठंड मै अपने घर मे बच्चो को पहना रहा कपडे गरम, उधर बगैर कपडे पहने गरीब बच्चे फिर रहे नंगधडंग
मेरे पास कपडो का ढेर एक दो नही पहने तो क्या फरक अलमारी बनी कपडो का नरक ।
अपने बच्चो के लिये खरीद दो-चार और ले आउ इतना मरा हुआ कि छोटे-छोटे बच्चो को इस मौसम मे बगैर कपडे देख न शर्माउ।
बहती ठंडी हवा गहराती रात जवान शरीर को भी डरा बता रही अपनी औकात
पक्का मकान उसमे यह हाल, तो जो सो रहे खुले आसमान उनके दर्द की किसको पहचान।
सोचता हूॅ इस कांक्रीट के जंगल मे अगर बसते इंसान तो नही सोता कोई भूखा न ठंड से मरते बूढे जवान।
करना नही कुछ ज्यादा बस निकलो घर से अपने देखो इधर उधर जहाॅ कोई गरीब बगैर कपडे नजर आए उसे एक कपडा पहनाए।
हर चीज की करते देख भाल और जीते इंसान रह रहे बेहाल यहीं समझदार कंगाल।
चलो हम समझदारी से जीवन चलाए एक भूखे को खाना खिलाए अनपढ को पढाए हाथ दिये दो एक गरीब की मदद को बढाए|

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