एक केम्पस मे देख फलदार पेड मन
खुश हो गया मैने पूछा यह किस अकलमंद का है प्रयास ,जो आज महक रहा पूरा परिसर फैल रही
फलो की सुवास। जहाॅ जता हूॅ देखता हू लगा रक्खे है कुछ भी उटपटाग पेड कम जगह और
127लाख को खिलाना जिलाना कठिनाई अब भी है शेष ,तो पेड लगाने होगे जगह के अनुसार विशेष।
अब तो बीत गया जंगल मे मंगल वाला दौर, न फल न छाया तपती धूप चारो ओर। अब जंगल पर आश्रित
जीवन क्यो न हो कमजोर ,कुपोषण का शिकार पेड कट गये अब न खाने को फल न रोजगार। नही तो
दिन बीत जाता था जंगल की छाॅव ,कौन लौटता था घर कुछ खाने गाॅव। फल खाकर खेलकर सो जाते
थे और मजबूत जवान खडे हो जाते थे। किसी के घर मे कहाॅ होता था इतना खाना, दिन बीत गये
पर गरीब का न बदला जमाना। इसलिये भारत की आबादी कमजोर है ,सरकारी योजनाओ मे बेहूदे
पेड लगाने पर जोर है। एक सेहजन का पेड कर देता गरीब की सब्जी का प्रबंध, नही रहता फिर
उसका कुपोषण से सम्बन्ध। जामुन का पेड कोई भी लगाए फल सबको मिलता है, गरीब का बच्चा
तो यही सब खाकर पलता है। ऐसे ही मिलता था सीता फल, पर बीत गया वह सुनहरा कल। यह उगते
थे खेतो की मेड पर न जानवर ,के खाने की चिंता न रखवाली की फिकर। चलो यह हो गई बीती
बात ,आओ मिलकर करे नई शुरूवात। जब हम ठान लेते है तो झुका देते है चीन जैसा देश फि र अब कहने को क्या रह जाता
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