Friday, November 4, 2016

पेड और औरत एक समान



बाजूवाला आम का पेड और सामने रहने वाली औरत के बारे मे आपसे करे बात , आॅखो के सामने रहते है दिन रात। लोग आते दिन मे धूप के मारे खडे हो जाते पेड की छाॅव ,दिन रात करती काम थकने का नही नाम हर पल रहता उसको बच्चो पति का खयाल जानता सारा गाॅव। पेड था ऐसा फलदार कि झुक जाती थी उसकी डाली ,उस औरत की बात भी थी निराली ,हर पल किसी न किसी का करती काम नही रहती कभी खाली। राह चलते लोग फल नही पाते तो मारते पत्थर तोड देते डाल, क्योकि था फल का सवाल, इसका भी यही हाल पैसे माॅगता पति दारू का सवाल उठाता हाथ पड जाते चेहरे पर निशान पर जरा न परेशान। पत्थर का वार गिर पडते फल हजार, इतनी पडती मार पर प्यार लुटाती हर बार। मैने नही देखा कभी फल खाने वालो ने इस पेड को दिया हो पानी, इतना काम करती पर कभी किसी ने नही देखी उसकी परेशानी।पेड बना रहा उसी तरह छायादार, मैने उसे भी नही देखा कभी बीमार। कभी मै भगवान से कहता तुमने इनको बनाया है कैसा ,मिलता जुलता एक जैसा। दोनो कितने उदार सबुछ लुटाने को तैयार, दूसरा कुछ भी करे व्यवहार ये उसका नही करते विचार। पर मै देखता हूॅ हर फलदार पेड और औरत का यही हाल है ,काम वह सब करती है पर उनके अधिकार का किसको खयाल है। काटने वाला कभी भी देता पेड काट कर देता जमीन से अलग, तीन तलाक कह आदमी कर देता अपने से विलग।सोचने का है यह समय कि सभ्य समाज मे ये दोनो क्यो इतने लाचार ,क्यो हो रहा इनके साथ दुश्मन की तरह व्यवहार। पेड लगाओ और दो खाद पानी ,कुछ करो ऐसा की उनकी भी हस्ती जाए पहचानी।

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