रफ्तार के होकर शिकार हर साल मर जाते लोग इसे क्या कहेगे हत्या या जीवन संयोग
मुझसे कोई पूछे आज कैसे और क्या करने से सुखी होगा समाज।
तो मै कहूगा कर दो जीवन रफ्तार कम इसमे मर रहा आदमी घुट रहा दम
इससे परिवार टूट रहे बिखर रहे रिश्ते रफ्तार मे सबसे ज्यादा अबोध नवजात है पिसते।
रिश्तो का अमृत बह गया आदमी मशीन बन कर रह गया
सभी दौड रहे कहानी के खरगोश के समान दौडोगे तो बचोगे बरना तुम पर गिर पडेगा आसमान
थोडी रफ्तार घटाओ आदमी हो जीवन है हसने मुस्कुराने का नाम कुछ पल शांती के बिताओ
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