Monday, November 28, 2016

हर कठिन राह अकेली है कोई साथी न सहेली है

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हर कठिन राह अकेली है कोई साथी न सहेली है
सूनसान सडक बेजान सा चला जा रहा हूॅ मै किस ओर जानता नही नियती का यह छोर
हर कठिनाई एक पहेली है यह सडक ऐसी ही अलबेली है
दूर तक यह पत्तियो का गुबार लगता है यह निर्जन सडक पर कोई कर रहा इंतजार
निराश चल रहा हू की जीवन का नया सवेरा उस ओर तक रहा मेरी राह मै भटक रहा हूॅ यू ही गुमराह
निर्जन राह का मै पथिक नही जनता अगला मोड आगे कोई मिलेगा हम सफर या यूही भटकने के लिये देगा छोड

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