बचपन के वे दिन यादे है बाकि पर वे गये छिन
वे बचपन के साथी हमी दुल्हे हमी बाराती
सुबह माॅ का जगाना रूठे तो मनाना
वह हर बात के लिये जिद करना रोना धोना रात भोजन से पहले सोना
माॅ का जगाना गोद मे खाना खिलाना सुबह स्कूल की तैयारी आई दोस्तो से मिलने की बारी
होम वर्क न करने पर मास्टर का डर फिर छुट्टियो पर नजर
त्योहार का इंतजार मस्ती की भरमार
दादी की कहानी वो मौसी और नानी
आज वे सब समय की गोद मे सो गये
जाने इतने अच्छे दिन कहाॅ खो गये ।
अब है जिम्मेदारियो का भार छल कपट पूर्ण व्यवहार
जाने कहाॅ बिछुड गये वो यार अब हम बडे है है समझदार
पर उस बचपने की बात अलग ये सब तो है बेकार
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