Saturday, November 19, 2016

वह चली गई बिना किसी को बताए

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;कल वह चली गई बिना किसी को बताए माॅ-बाप परेशान,कहाॅ गई कैसे ढूढ कर लाए? उम्र केवल बारह साल,उसपर लडकी, जमाना देख आ रहे बुरे-बुरे ख्याल।माॅ-बाप सोच रहे,नही कुछ कहा,नही सताया, फिर उसने क्यो यह कदम उठाया। मित्र, पडोसी सब परेशान,जमाना खराब बच्ची अबोध,नही उसे ज्ञान,न ही सजग,न सावधान। धीरे-धीरे शाम रात मे बदली पर वह न आई घर,सब देख रहे थे राह रास्ते पर थी नजर। कई लोगो को लगा,उसके साथ कोई घटना तो नही घट गई चलती रही उसकी खोज,आज सब कुछ वैसा नही था जैसा होता था रोज। सबकी शक की निगाह माॅ-बाप,पर कोई कह रहा था "इन्होने नही की परवाह,सब इनका गुनाह"। वे भी बेचारे बेटी के गम के मारे,सुन रहे थे ताने,जाने-अनजाने। शाम को माॅ के कानो मे फिर गूॅजी वही वाज "हलो माॅ!मै बोल रही हूॅ",शायद माॅ ने जीवन मे किसी आवाज को सुन,नही पाया इतना सुकून,इतने सारी बाते की गई,जैसे चढ गया हो जुनून। मामा की याद आ रही थी इस लिये चली आई,मामा के घर तू मत कर मेरी फिकर । कितने आसानी से उसने कह दिया यह सब ,पर माॅ बाप की तो चली गई थी जान लौटी अब।कितनी आसानी से कह दिया गलती हो गई, माॅ- बाप की तो जीने की उम्मीद ही थी खो गई, जो अपने बच्चे को देख-देख कर जीते है वह उन्हे न देखे तो क्या हाल होगा जाने कब बच्चो को यह ख्याल होगा।

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