रात की चाॅदनी से दूर हुआ अॅधेरा कल तक कितना स्याह था कृष्ण पक्ष गहरा।
सजी हुई तारे की बारात, चाॅद है मुस्कुराता हुआ साथ
चाॅदनी की शीतल बयार चाॅद जता रहा धरती से प्यार
दुल्हन की साडी मे टके सलमे सितारे
उजाला कर रहे जीवन मे हमारे तुम्हारे
चाॅदनी रात का शीतल अहसास
जैसे मुॅह मे घुलती मीठी मिठास
आसमान मे छिटके तारे है ऐसे
गुल्लक के फूटने पर निकले हो पैसे
मन करता इन्हे समेट लो
चुन्नी बना के तन पर लपेट लो
बडे कलाकार की कलाकारी गजब
कितना सुन्दर बनाया है सब।
No comments:
Post a Comment