Monday, November 28, 2016

अब नही बचे वे खेल दोस्तो मे भाईयो जैसा मेल

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गाॅव के मकान भी अब पक्के हो गये पर रिश्ते जो पहले थे वे कच्चे हो गये
अब नही रही उनमे वह मिठास खत्म हो गया हास परिहास
मकान की दीवारे मनो मे उतर आई बढ गई अविश्वास की खाई
अब नही सजती चैपाल अब नही रहा बडे बुजुर्गो का ख्याल
अब बैलो की घंटी की जगह है ट्रैक्टर का शोर धुआॅ बंद हो गया दरवाजे का कुआॅ
न बचे पेड न फल हो गये सब बीता हुआ कल
वहाॅ भी शुरू हो गयी दौड हर कोई आगे बढना चाहता अपनो को पीछे छोड
अब न रहा बडो का अभिवादन और आर्शिवाद का स्नेह और प्यार शुरू है हर बात पर तकरार
आज वहाॅ की घडी भी तेज दौड रही है रिश्तो की मिठास पीछे दोड रही है
अब नही बचे वे खेल दोस्तो मे भाईयो जैसा मेल

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