Tuesday, November 29, 2016

पेड से है धार, धार से हरियाली का विस्तार

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छिड गई तकरार इतराती बोली श्वेत सुन्दर धार
मेरे जलवे हजार मेरे को देखने आते सैलानी बार -बार
पेड बोल नही ऐसी बात हम से है तुम्हारी औकात क्यो इतराती बात- बात
चलो पहाड से पूछे जिस पर हम रहते वे किसको बडा कहते
पहाड बोला पेड न होगे तो तुम हमेशा नही बहोगी केवल बरसात तक रहोगी
साथ साथ ये न बहेगी तो हरियाली भी न रहेगी
तुम दोनो को चाहिये एक दूसरे का साथ हरियाली और खुशहाली के लिये प्रेम से करो बात
तुम दोना ही मुझको भाते और करते मेरा श्रृंगार पेड से है धार, धार से हरियाली का विस्तार 

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