Friday, November 18, 2016

बसंत बहार।

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आये ऋतुराज करके श्रृंगार सब कर रहे थे इंतजार कोयल भी देखो गा रही सुगंधित बयार लुभा रही
सुनो भौरे का गुंजार फूलो पर बैठ जता रहा प्यार
तितलिया चल दी देखो सखियो के साथ कर रही एक दूसरे से बात
मान्या अयूषी सौम्या आओ इधर अरे स्तुति तुम चल दी किधर
 चलो उधर है फूला की क्यारी आज वही है मंजिल हमारी
वह देखो कितना सुन्दर गुलाब इसको पाना है मेरा ख्वाब
उसमे काॅटे हजार उसके बारे मे सोचना बेकार
वह देखो बौराया आम हम को बुला रहा करके श्रृगार मन को लुभा रहा
 घूमत घूमते थक गया तन पर भरता नही मन
जब से आये ऋतुराज तुम मन मे उमंग थकान गुम पर आकर जाने कहाॅ चले जाते तुम
 हम सब करते इंतजार फिर आये बसंत बहार।

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