Wednesday, November 30, 2016

आदमी का जीवन मिला तो चलो मुस्कुराए

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पता नही अगला पल पर गणनाओ और कल्पनाओ मे बीत रहा आज और कल
जिन्दगी मे नही होते कुल सौ साल पर यही आदमी को आता विश्व जीतने का ख्याल
अगर है ही उन्माद तो एक दिन किसी गरीब को खिलाओ एक एक -एक पल को नर सेवा मे लगाओ
पर नही हमे तो लोगो को मार बतानी है अपनी शान, अपने खुद के हलक मे रहती है जान
पता नही कब कौन मार देगा, अगर करम है ऐस तो कौन रहम करेगा
धर्म का उन्माद सर चढ बोल रहा आज मालूम, नही कल अपनी ताकत तौल रहा
मान विध्वंस मे तुम्हारा जवाब नही, निर्माण का आॅखो मे ख्वाब नही
बस कल हूरे मिलेगी इसलिये मरना है, आज ऐसे पागलो का क्या करना है
इस तरह की सोच का मिटना जरूरी की शांती आए ,आदमी का जीवन मिला तो चलो मुस्कुराए

करना उस परम तत्व संयोग

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शिला पर बीच जल कर रही हू योग करना उस परम तत्व संयोग
जिससे निकली उस मे मिलने की तैयारी जीवन दौड दौडते हारी
जल से निकला जैसे जीवन मै भी जल बीच उसको रही पुकार दोनो हाथे को बना के हार
योग कराता परमात्मा से मिलन मै भी इसके लिये साध रही मन
बीत रहे साधना मे पल आज नही तो मिलना होगा कल तैयार कर रही अपने को की आए वह पल

जहाॅ चिर शांत आनंद संसार|

छोड आया उस तरफ संसार यहाॅ हू अकेला, डूबते पल का कौन होता साथी, जीवन लौ जब बुझने से पहले टिमटिमाती|
सामने है जीवन का नवजात पर अपना तो सूरज डूब रहा नही रही वह बात
रिश्तो की डोर शिथिल पर पकड रहा हूॅ पूरी जोर आ गया जीवन का अंतिम छोर
नजर से ओझल हो रहे नजारे गहन अंधकार मे एक बिन्दू है, लगता यही जीवन सिंधू है
कहते है इसमे डूबने वाले को मिलता है उजियार, मै भी तैयार जाना है उस पार ,Photo

कुल्हड की चाय दिल करता फिर मिल जाए

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मिट्टी के प्याले मे गरम चाय सोधीं सुगंध जी ललचाए
उस पर ठंडी का मौसम एक पीने के बाद कहें एक और पिलाए
गरीब कुम्हार बडे दिल से बनाए फेको म्ट्टिी मिट्टी मे मिल जाए
न कचरे का संकट न कूडे का ढेर ठंडी का मौसम फिर पीने मे क्यो करते देर
कुल्हड की चाय दिल करता फिर मिल जाए

Tuesday, November 29, 2016

पेड से है धार, धार से हरियाली का विस्तार

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छिड गई तकरार इतराती बोली श्वेत सुन्दर धार
मेरे जलवे हजार मेरे को देखने आते सैलानी बार -बार
पेड बोल नही ऐसी बात हम से है तुम्हारी औकात क्यो इतराती बात- बात
चलो पहाड से पूछे जिस पर हम रहते वे किसको बडा कहते
पहाड बोला पेड न होगे तो तुम हमेशा नही बहोगी केवल बरसात तक रहोगी
साथ साथ ये न बहेगी तो हरियाली भी न रहेगी
तुम दोनो को चाहिये एक दूसरे का साथ हरियाली और खुशहाली के लिये प्रेम से करो बात
तुम दोना ही मुझको भाते और करते मेरा श्रृंगार पेड से है धार, धार से हरियाली का विस्तार 

अब सब दिखता है पर जिन्दगी होने को है खाक

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जिन्दगी का सूरज डूबने की कगार अब नही कोई आकर्षण न कोई जताता प्यार
अब नही मुझमे वह रफ्तार की चलू जवाॅ उम्र के साथ खत्म हो चुकी वह बात
मन बहलाने को अगर सोचू की मै जैसा था वैसा हू पर आईना बोल देता और की क्या कहूॅ
झड गई पत्तियाॅ सूख रही डाल अब तो पंक्षी नही आते पूछने हाल
अब तो तना भी सूख पड गया काला वह भी दिन थे कि सोचते थे दिन हमारे लिये निकलता हमी से उजाला
यही जीवन का सच की, जवानी मे नही देखने देती अभिमान की आॅख, अब सब दिखता है पर जिन्दगी होने को है खाक

राम जी बहुत कुछ सिखाते है नजर हो तो हम देख पाते है

बाल्मीकि रामायण में कहा गया त्रेता युग में इस धरा से असुरो का नाश करने के लिए…
स्वर्ण मृग सीता माॅ को भा गया मन मे उसे पाने का विचार आ गया
कह बैठी मुझे वह मृग चाहिये मेरे लिये इसे ले आइये
इस एक स्वर्ण आकर्षण उन्हे जीवन भर किया परेशान
आज भी इसी मृग त्रष्णा से मे मर रहे अच्छे भले इंसान
वह तो राम जी का ही रचाया खेल था पर सबक हजार जरा करो विचार
आज स्वर्ण मृग के पीछे अपनो के लिये दोडने मे उमर बीत जाती है जिन्दगी रेत की तरह फिसल जाती है
उम्र भर का हासिल सिफर बीत गई दौडते दौडते उमर
राम जी बहुत कुछ सिखाते है नजर हो तो हम देख पाते है

सम्हाल उसकी जिसके दिल मे संवेदना और आॅखो मे नमी

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यही वह दिशा है बहना जहाॅ से बदलाव आएगा, जमाना जो पहले पूजता था फिर सर झुकाएगा
सीखे हुनर और करो पढाई, तुमने छोडी इसलिये मुसीबत आई
हर तरह से होना होगा मजबूत, कि तुम ही हो आधार, तुम ही रचना की शक्ति तुमसे है संसार
नारी की शक्ति से पता चलता कितना उन्नत समाज, बेडिया मे जकडी नारी बदहाली की आवाज
नारी की धुरी पर घूमता परिवार, धुरी की मजबूती सम्हाल सकती संसार
जब कमाने वाले दो हाथ औरत के होते है, तो सब काम अच्छे होते है
न बच्चे रोते न होती किसी सामान की कमी, क्योकि सम्हाल उसकी जिसके दिल मे संवेदना और आॅखो मे नमी

जीवन मे शांत हुए तो जीते जी मिल जाता निर्वाण का पल

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इसको देख लगता जैसे साधक का साधना स्थान जो यहाॅ एकांत मे बैठ करता साधना लगाता ध्यान
ज्ञानी कहते जो आॅखो से दिख रहा सब माया है छल है आज है नही कल है
यहाॅ वह हर चीज आॅखो से दूर है पूरा एकांत और अग्नि की तपन भरपूर है
आ रहा इतना प्रकाश की देख सको आस पास
कहते है जब सब कुछ  हो जाता है खामोश, तब मूल शब्द जागता है ,जब मन हो चंचल तो सत्य दूर भागता है
हो जाता आॅखो से ओझल, जीवन मे शांत हुए तो जीते जी मिल जाता निर्वाण का पल

Monday, November 28, 2016

धर्म के अंधे बन कर लो ईराक सीरिया जैसा हाल पूरी तरह तबाह हो गये बदहाल

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यह सतर्क निगाहे ऐसा नही की नीद से नही होती भारी, पर पूरा देश चैन से सोए इसकी हम पर जिम्मेदारी
हमे सिखाई जाती एक ही बात दुश्मन की गोलियो से गोलियाॅ ही कर सकती बात
हमारा दुश्मन बडा गद्दार 48 से ही छद्म वेश मे करता हम पर वार
कायर एक बार सामने से आता नही लडने, लडो तो लगता है इसका दम उखडने
72 मे एक लाख ने हमारे सामने डाल दिये हथियार, छोड दिया हमने कर ली शांती स्वीकार
भईये को मिली जितनी जमीन वही बेच रहा, कही अमेरिका कही चीन खेंच रहा
कहता भारत दुश्मन नम्बर एक क्योकि हमारे दिल मे नही नफरत इरादा नेक
पूर्वज तो हमारे एक तुमने मार के डर से धर्म बदल लिया, भारत ने बटवारे का दर्द सहा और सम्हल लिया
हम नही चाहते तुम मर जाओ पर बंद करो गलत हरकते सुधर जाओ
हम नही चाहते धर्म के अंधे बन कर लो ईराक सीरिया जैसा हाल पूरी तरह तबाह हो गये बदहाल


जमा करते रहे पाप करम मौका मिला सुधार लो अपना धरम

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तुम नोटो के गद्दे पर सोते हो यह काॅटो पर नंगे पाॅव चलती है पता नही कैसे पाप की कमाई फलती है
नोट बंदी का मानो उपकार धर्म के मार्ग पर चलने का मिला मौका सुधर जाओ यार
जो देश की गरीबी की कराह है तुम भी उसके एक कारण तुम्हार भी यह गुनाह है
सनातन का विचार खाने से पहले किसी भूखे को खिलाओ और करो सत्कार
धन संचय से बनते महान तो आज नही होता ज्ञान विज्ञान समाज सेवा लोक कल्याण
बच्चो की तरह गिनते रहे गिनती और जमा करते रहे पाप करम मौका मिला सुधार लो अपना धरम

अब नही बचे वे खेल दोस्तो मे भाईयो जैसा मेल

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गाॅव के मकान भी अब पक्के हो गये पर रिश्ते जो पहले थे वे कच्चे हो गये
अब नही रही उनमे वह मिठास खत्म हो गया हास परिहास
मकान की दीवारे मनो मे उतर आई बढ गई अविश्वास की खाई
अब नही सजती चैपाल अब नही रहा बडे बुजुर्गो का ख्याल
अब बैलो की घंटी की जगह है ट्रैक्टर का शोर धुआॅ बंद हो गया दरवाजे का कुआॅ
न बचे पेड न फल हो गये सब बीता हुआ कल
वहाॅ भी शुरू हो गयी दौड हर कोई आगे बढना चाहता अपनो को पीछे छोड
अब न रहा बडो का अभिवादन और आर्शिवाद का स्नेह और प्यार शुरू है हर बात पर तकरार
आज वहाॅ की घडी भी तेज दौड रही है रिश्तो की मिठास पीछे दोड रही है
अब नही बचे वे खेल दोस्तो मे भाईयो जैसा मेल

हर कठिन राह अकेली है कोई साथी न सहेली है

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हर कठिन राह अकेली है कोई साथी न सहेली है
सूनसान सडक बेजान सा चला जा रहा हूॅ मै किस ओर जानता नही नियती का यह छोर
हर कठिनाई एक पहेली है यह सडक ऐसी ही अलबेली है
दूर तक यह पत्तियो का गुबार लगता है यह निर्जन सडक पर कोई कर रहा इंतजार
निराश चल रहा हू की जीवन का नया सवेरा उस ओर तक रहा मेरी राह मै भटक रहा हूॅ यू ही गुमराह
निर्जन राह का मै पथिक नही जनता अगला मोड आगे कोई मिलेगा हम सफर या यूही भटकने के लिये देगा छोड

ईश्वर का स्वर्ग धरती पर दिखाने का प्रयास है

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ऐसा लगता जैसे देव सरोवर या झील है
पिघली बर्फ का जल कितना सुन्दर कितना शीतल
इसमे लगता अप्सराए करती होगी स्नान पहाडियो से घिरा हिम जल स्थान
इतनी सुन्दरता भगवान ही बना सकता है वही धरती पर स्वर्ग ला सकता है
नैसर्गिक इस सुन्दरता को निहार मन जाता है हार
इस लिये जिसमे उसकी सुवास है ईश्वर का स्वर्ग धरती पर दिखाने का प्रयास है

Sunday, November 27, 2016

घूमने की जगह और पेडो की छाॅव शहर से अच्छा अपना गाॅव

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ठंढ बहुत है यार बुझ गया अंगार
अभी तो रात है बडी ठंढ मे बडी जोर बजती घडी
चलो और लकडी लाए अंगार फिर सुलगाए
कपकपी के मारे चलते नही बनता ठंड के मारे पाॅव है जमता
तू इधर उधर मत देख कुछ कर है बच्चो का सवाल मर जाएगे अगर नही रक्खा ख्याल
ये साला शहर का जीवन है खराब नही जलते चूल्हे कि मिल जाए आग
चल यार चले अपने गाॅव की ओर नही मिलता खाना हो गया कमजोर
अब तो सुनते है निकल गया इनका काला धन तो हमे पालने का इनका नही करता मन
अपना गाॅव ही भला है घूमने की जगह और पेडो की छाॅव शहर से अच्छा अपना गाॅव

रौशनी धीरे धीरे बढ रही है अवरोध है बडे पर लड रही है

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रौशनी धीरे धीरे बढ रही है अवरोध है बडे पर लड रही है
जिन तक पहुॅचा प्रकाश उन पर जिम्मेदारी वे इसे बढाए बहुत है अनपढ समाज मे उन्हे पढाए
सब को कर्ज है चुकाना शिक्षा का कर्ज तब घटेगा जब ज्ञान का प्रकाश बढेगा
नगर हमारा गाॅव हमारा है देश का हर समाज हमारा ,हम है पापी अगर वह अपनढ रह जाएगा बेचारा
हाथो मे हमारे है हुनर का प्रकाश तो इसे फैलाए अपने पैर पर समाज को खडा कर दिखाए

अब छिडा गरीब की उन्नति का रण आर पार

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एक ही कश्ती के सब सवार
माना नही मिलते हमारे विचार
चलती रहती है हमारे बीच तकरार
पर हम ही नाव के खेवनहार
ले जाना हमको कश्ती को उस पार
अगर यूॅ ही लडते नाॅव डूब जाएगी बीच मजधार
करो मंथन नही इससे इनकार
पर हम भी जानते जाना किस दिशा की पहुॅचेगे पार
इस पर अगर करोगे तकरार
तो सवार ही देगे तुमको मार
ऐसा ही संसद के अंदर जनता को समझ रहे अज्ञानी बंदर
 पर ये नही जानते हमे मालूम उन्नति का द्वार
इस बार आधे सच के शिकारी होगे खुद शिकार
अब छिडा गरीब की उन्नति का रण आर पार

बच्चो से सीख लो जीने का हुनर

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इतनी निश्छल हॅसी पर दुनिया निसार ,मन करता ले लो गोद और कर लो प्यार
इनकी हॅसी देख लगता इन्हे मिल गया दुनिया का खजाना, इन्होने ही तो प्यार को प्यार जाना
आज किसी बडे को कह दो मुस्कुराए तो कहेगा दिन बीत गये हम हॅसी पीछे छोड आए
यही सिखा सकते है आनंद मे कैसे होते है मगन इनके अंदर सच जिंदा और है अपने मे मगन
हम घूम रहे जमाने भर का भार सर उठाए हमने अपने भी कर दिये पराए
बच्चो से सीख लो जीने का हुनर न आज की चिंता न कल की फिकर।

वो सीमा पर रह कर देते है बलिदान तो तुम भी अपने कामो से बढाओ देश का मान

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राम कृष्ण की इस धरती धरती पर गिलहरी भी कर्तव्य निभाती है वह भी रेत के कणो से राम सेतू बनाती है
देख देश की शान जमीन पर ध्वज देश का लहराती है कमजोरो को सेवा धर्म बताती है
सब को हक है वह अपने देश का मान बढाए जरूरत नही वह सीमा पर ही लडने जाए
जहाॅ रहो थामो देश पताका अपने हाथ इसको थामे जवान देखते नही दिन रात
वो सीमा पर रह कर देते है बलिदान तो तुम भी अपने कामो से बढाओ देश का मान

राम रावण युद्ध की कहानी है धू धू करती लंका राख मे मिल जानी है

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सोने की लंका धू धू करती जिसका देखा न किसीने ख्वाब ,यही अभिमान को शैतान को मानव का जवाब।
रावण कहता रक्ष संस्कृति को मान वरना तलवार करेगी तेरा डद्धार, राम ने उसके परिवार सहित उसे दिया मार यही है जवाब घर्म के नाम मत करो अत्याचार,उपर वाला करता देर पर होता पूरा हिसाब
 जो सोचा नही हनुमान जी ने दिया वैसा जवाब |
पर रावण मरे बिना नही मानता, अभिमान मे अपने को बलवान जानता
वह हर 19 का 20 बनाता है, और न बन सके तो वह खुद आकर लेता हिसाब
सब गये जान कि अब न बचेगे प्राण जो इसने न लौटाया नारी का सम्मान
यही राम रावण युद्ध की कहानी है धू धू करती लंका राख मे मिल जानी है

धरती पर जीते जागते भगवान

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छोटी आॅखो के बडे सपने निराधार निराकार को करते साकार
इस लिये कहते बच्चो की होती है भगवान से पहचान इतना बडा नही सोच पाते माया मे रचे बसे  इंसान
वे खुली आॅखो से सच का करते दीदार इसलिये ही कहते उन्हे ईश्वर का प्यार
ये है धरती पर जीते जागते भगवान इन्हे हॅसा सकता है तो हॅसा ,रूला मत नादान

माॅ बाप सुख से जीवन बिताते है जिनके बच्चे पढ जाते है

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भारत की इस भूमि पर कुछ लोग बच्चो के स्कूल जलाते है और दीन का राग गाते है
बिना पढे बनेगे शैतान उनके गुरू उन्हे इंसान बनाते है क्या शैतान दीन चलाते है
जो लोग उनके पाप छुपाते है वह भी पाप बढाते है पढे लिखे अच्छा जीवन बिताते है वरना आतंकी बन जाते है
कुछ बनते पत्थर बाज नकली नोट पर करते काज होकर गोलियो के शिकार मर जाते है उनके आका माल उडाते है
लडकिया पढती है तो बनाती अपने बच्चो को इंसान वरना तो बनना है शैतान वे और भी भले जो लडकियोको पढाते है
दिखाते हूरो के ख्वाब मरना है तो पहले तुम मरो ये क्यो नही देते जवाब अपने को तो मरने से दिनरात बचाते है
पढना लिखना बदलता तकदीर निखर जाती घर की तसवीर माॅ बाप सुख से जीवन बिताते है जिनके बच्चे पढ जाते है

Saturday, November 26, 2016

रात के अघेरे मे नही दिखता ठीक प्रकार और हम हो जाते घटनाओ के शिकार

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बडी मुश्किल से बनता है घर ,जरा प्रयास पर डालो नजर
कैसे की होगी इतनी बारिक बुनाई, कैसे सारी सामग्री होगी जुटाई
आखिर अपने बच्चो की सुरक्षा का सवाल, हर माता पिता करते पूरी देखभाल
इसलिये इसको उॅचाई देखकर लटकाती ,अपने बच्चे को हर खतरे से बचाती
अपने बच्चे को खाना खिलाना और शाम ढलते ही लौट आना
शायद यही पंक्षीयो की हमे है सीख, लौट आओ घर जब तक घर आखो से रहा दिख
रात के अघेरे मे नही दिखता ठीक प्रकार और हम हो जाते घटनाओ के शिकार

जानवर पंक्षियो ने दिये रंग और इंसानो ने अपनी हवस मे कर दी बदरंग।

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कई जानवरो की खत्म हो गई प्रजाती तो मैने कहा उनसे खतरनाक मनुष्य जाती
वे हो गये हमारे लालच का शिकार कुछ बचे बाकि हमने दिये मार
उस पर हम इतने मक्कार की करते उनके सिर टाॅग अपने पाप का इजहार
कभी नही देखा शेर ने अकारण कोई किया हो शिकार पर हमने तो शौक और शान मे हजारो जानवर दिये मार
इस पर भी नही भरा हमारा मन अब बडप्पन है संचयधन
हजारो भूख से मर रहे और और हम धन संचय कर सो रहे गरीब मुखमरी लाचारी मे रो रहे
गरीबो के नेता जो बने गरीब के नाम उनने भी कालेधन बनाने के किये काम
दलित की बेटियाॅ दौलतवान की हो गई वह भी संचित धन गद्दे की जगह फैला सो गई
कहते है आदमी के पास ज्यादा ज्ञान पर पाया विपरीत वह तो मक्कार बेईमान
जानवर नही करते अकारण शिकार इन्होने तो धर्म केनाम मार दिये लाख हजार
ईश्वर ने बनाई दुनिया को जानवर पंक्षियो ने दिये रंग और इंसानो ने अपनी हवस मे कर दी बदरंग।

कुछ देश हो गये तबाह इनके विचार से कुछ की है तैयारी एक एक कर आएगी सबकी बारी।

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जिन्दगी का खेल चल रहा हजारो साल से कई लोग डरा रहे लोगो को मरने के ख्याल से ।
सभ्यता विकसित हो गई नही हुआ इनका विकास दुनिया इनकी नजर से देखे इसके लिये रच रहे विनाश
कितने आए कितने चले गये फिर भी ये न बदले इनके करम डरा रहे और मार रहे कमजोरो को कि बदल लो धरम
ओसामा मरा, मर जाएगा बगदादी छीनने चला था लोगो की आजादी
मासूमो पर करते बलात्कार कि वो नही चलना चाहते जैसे इनके विचार
दिखाते अपने पापियो को जन्नत का ख्याल ख्यालो की दुनिया मे हूरो का जलाल
कुछ देश हो गये तबाह इनके विचार से कुछ की है तैयारी एक एक कर आएगी सबकी बारी।

Friday, November 25, 2016

अहिल्या के राम, दिलाएगे समाधी से विराम

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मौन तपस्वी बैठा सालो से धूनी रमाए मौसम आए जाए
कभी गिरती बारिश की धार कभी पडती ओलो की मार
बैठा अचल बीत रहा समय पल पल पर तनिक न डगमगाए
करते करते इंतजार साथी भी हो गये योगी वही बैठे जहाॅ बैठा जोगी
इश्वर आए तो टूटे ध्यान अंत: मे ढूढ रहा समधान
ढक गया तन उग आई घास पर नही विचलित मन मे विश्वास
एक दिन चरण धूल से अहिल्या के राम, दिलाएगे समाधी से विराम

सुबह माॅ का जगाना रूठे तो मनाना

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बचपन के वे दिन यादे है बाकि पर वे गये छिन
 वे बचपन के साथी हमी दुल्हे हमी बाराती
सुबह माॅ का जगाना रूठे तो मनाना
वह हर बात के लिये जिद करना रोना धोना रात भोजन से पहले सोना
माॅ का जगाना गोद मे खाना खिलाना सुबह स्कूल की तैयारी आई दोस्तो से मिलने की बारी
होम वर्क न करने पर मास्टर का डर फिर छुट्टियो पर नजर
त्योहार का इंतजार मस्ती की भरमार
दादी की कहानी वो मौसी और नानी
आज वे सब समय की गोद मे सो गये
जाने इतने अच्छे दिन कहाॅ खो गये ।
अब है जिम्मेदारियो का भार छल कपट पूर्ण व्यवहार
जाने कहाॅ बिछुड गये वो यार अब हम बडे है है समझदार
पर उस बचपने की बात अलग ये सब तो है बेकार

Thursday, November 24, 2016

सबका होगा इलाज पूरा मोदी जी नही छोडते काम अधूरा

सुनते है 28 को देश बंदी तो सुन लो 200 जो खडे थे वो और उनके सम्बंन्धी विपक्ष को वोट देना 28 से बंद और खत्म सारे सम्बन्ध
वह समय बीत गया जब आधे सच से बरगलाया करते थे सच न जानने वाले तुम्हारी कसमे खाया करते थे अब तो सब साफ है एक भी गुनाह नही माफ है
जितना कालाधन है कमाया उसको निकालो मोदी जी पीछे नही हटने वाले सुन लो धमकाने वालो
एक कह रहा पूरे देश मे जाउगा घूम के लात जूता खाउगा तो खा फिर दिल्ली की जनता को मोदी छाप जूते का स्वाद बता
कल तो मौन टूट गया खुल गई जुबान लौट आये प्राण वाह रे नोट की गरमी देखी जनता ने तुम्हारी बेशर्मी
वाह रे एकता सारे कालेधन के साथी क्या गधा क्या घोडा क्या हाथी
सबका होगा इलाज पूरा मोदी जी नही छोडते काम अधूरा समझे भूरा

तू ही मेरी दुनिया मेरा संसार

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इस नई दुनिया मे स्वर्ग का हिन्डोला तेरी छाती है बडी मीठी नीद इसमे मुझे आती है
नही लगता भय की मै छोटा और दुनिया इतनी बडी, मेरे लिये तो यहाॅ रूक जाती घडी
सुनता रहता तेरी धडकन का संगीत पता नही चलता कब रात जाती बीत
तेरी सुगंध और तेरा मुलायम स्पर्श मेरे लिये पुष्प का झूला और सुन्दर बयार माॅ मै तेरे को सबसे ज्यादा करता हू प्यार, तू ही मेरी दुनिया मेरा संसार 

चल पडना यही मेरा क्रम है यही जीवन धरम है

Photo: A beautiful Sunset*घटने लगा अधियारा अरूणोदय के साथ चिडिया बोली पंछी करने लगे आपस मे बात बडे कहने लगे बच्चो आॅखे खोलो बीती रात देखो प्रकृति मे आ गई जान जो अंधकार मे थी सूनसान सब चल दिये करने प्रयास नया दिन लिखो नया इतिहास बीता वह कल था माना तू असफल था पर दिन बदल गया तू अपना समय बदल ले फिर प्रयास के लिये निकल ले देख सूरज चढ रहा है बादलरोक रहे राह पर वह लड रहा है जीवन उद्देश्य लेकरनही करता परवाह करना है उजाला नही रूक सकता देख बादल काला सफलता असफलता से मुझे क्या करना मेरा कम चल पडना यही मेरा क्रम है यही जीवन धरम है

50 दिन भारत की जनता कर सकती इंतजार


मनमोहन सिह जी आपके राज के सारे घोटालो की जनता ने सह ली मार तो 50 दिन भारत की जनता कर सकती इंतजार
हम तो कब से का रहे इंतजार 70 साल तो आपने नही जताया इतना प्यार
मनमोहन जी हमारे जीवन को देख तो जीवन भी रोज आॅसू बहाता है गरीब तो कब से मर रहा वह कहाॅ जी पाता है
हमारे उपर फिल्म बनती आप देख के आते है हम जीवन कष्ट बिताते है आप फिल्म का मजा उठाते है
 आपने सुविधा अनुसार किया ज्ञान उपयोग पढे लिखे हमारे बारे मे सोचे नही घटा यह संयोग
एक बार कर क्या दिया ताकत वर पर वार आप दिखा रहे गरीब पर प्यार
जीने की उम्मीद जागी तो करते हो गरीब के मरने की बात पर शब्द नही देते तुम्हारा साथ
नोटबंदी गरीब के लिये उजाले की किरण, भेरी बज चुकी ,सेना सज चुकी, अब छिडा उन्नति का रण