दपर्ण देखता है साफ वह सच दिखाता पर आदमी के अंदर का भाव उसे सच देखने नही देता यही माया यही छल है उसका भाव उसके सच से प्रबल है । वह तो भगवान की तरह करता है न्याय पर हर आदमी अपने अनुसार ही पढ पाए। इस लिये दर्पण से लोग नही होते विमुख खडे होकर निहारते सन्मुख।वह देख लेता है आपके छोटे से छोटे दाग पर आप तभी देख पाओगे जब रहे हो जाग।उसका सच नही कर स्वीकार आप देखते हो अपनी छवि अपने अनुसार सच देखना और सुनना नही आसान उसके लिये आदमी जिंदा होना चाहिये उसमे होनी चाहिये जान।अभिमान आप पर हो जाता सवार बस चाटुकारो का सच आपके लिये सच होता बाकि बेकार।
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