गंगा का प्रबल वेग और विस्तृत धार शिव की जटाओ मे समाई कि फिर न दी दिखाई
भागीरथ परेशान की कहाॅ खो गई वह प्रबल धार जिसका नही कोई पार
शिव से कौन पा सकता पार वह जब चाहे साकार नही तो निराकार
प्रभु मेरे पर करो उपकार मेरे पूर्वज करते इंतजार भटक रहे शापित करना है उनका उद्धार
तब प्रभु ने जटाओ का एक सिरा खोला तब गंगा का स्वर पृथ्वी पर कल-कल छल-छल बोला
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