दिन ढलने जा रहा रात आने वाली ठंड की रात होती कडकडाने वाली
बहुत से बेघर बेचारे ठंड की मार से परेशान जो कमजोर उनकी जा रही जान
इतने घर आलीशान ,ये भी आदमी है इनमे भी है जान कर सको तो करो मिल इनके उपर भी छत हो कब तक
ओढेगे आसमान
रैन बसेरे मे भी बुरा हाल सरकार कब तक कर सकती देख भाल ,इनका तो मिलकर रखना चाहिये खयाल
इंसानो का भी तो कोई इंसानियत के नाम पर फर्ज है, मानव मात्र की रक्षा से ही कटता यह कर्ज है
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