Thursday, December 22, 2016

शहर मे आकर गाॅव के हम भारत वासियो की खो गई पहचान, अब पूछते मकान नम्बर बताओ या निशान

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शहर मे आकर  गाॅव  के हम भारत वासियो की खो गई पहचान, अब पूछते मकान नम्बर बताओ या निशान
हमारी होती थी गाॅव मे बाप दादा के नाम से पहचान ,उनके कर्म का भी सबको होता था भान
इस लिये हर आदमी करता था जिम्मेदार पूर्ण व्यवहार, कि नबिगडे उसके परिवार का नाम करते रहे सब जय जय कार
अब किस की परवाह किसका लिहाज न समाज की फिकर न जमाने का लिहाज इस लिये बिगड रहे सब रीती रिवाज

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