उपर से गिरती अमृत धार जैसे गंगा करती हो शिव का श्रृंगार
यही वह जल का विस्तार जहाॅ बसता जीवन संसार होता स्स्कृति प्रसार
क्योकि जल बिन सूना सब संसार जल ही जीवन तत्व आधार
सब बह हो जाता बेकार मिल जाता सागर मे अगर न किया रोकने का कार्य
परिश्रम के द्वारा खुलता उन्नति का द्वार मोड दो रूख दरिया का इस प्रकार
किसान के खेत तक पहुॅचे यह विस्तार अन्न उपजे जिससे अपार
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