आज जो भूमि शमशान है वीरान है वह आदमी की हवस का मकान है
प्रकृति की गोद मे बसा गाॅव दूर तक घनी छाॅव ही छाॅव कहाॅ सबको मिलता है ऐसा घर जहाॅ हरियाली आती चारो ओर नजर पर इसे रहने वालो बचाना धन के लोभ मे इसको न बेच खाना आज जो भूमि शमशान है वीरान है वह आदमी की हवस का मकान है
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