Saturday, January 21, 2017

हर ओर प्रणय निवेदन और इजहार प्रकृति देखो दे रही आमंत्रण कर श्रृंगार

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देख फूलो की बहार मन ठहर जाता बार बार की यह है बसंत बहार
कामदेव चले फूलो के रथ ले तीर कमान जड भी सजीव हो गये उनमे भी आ गई जान
हर ओर प्रणय निवेदन और इजहार प्रकृति देखो दे रही आमंत्रण कर श्रृंगार
पर समय के साथ यह दृष्य हो जाएगा ओझल ए मन ठहर निहार लेने दे कुछ और पल

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