जीवन मे लिप्त होने से जन्मी निराशा सब लगता झूठ टूट रही आशा
पर समझ नही आता क्या करू की मिले आराम मन को शांती का पैगाम
इस लिये इससे दूर हो कुछ चाह है किसी को नही मेरी परवाह है
लोग सही कहते यह न खत्म होने वाली दौड कुछ करो और की जिसके लिये हो आए क्यो बैठे अपने को भुलाए
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