Wednesday, February 22, 2017

यही है प्रकृतिक सुन्दरता का विस्तार ईश्वर का बसाया सुन्दर संसार

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चारो ओर जंगल और पहाड बीच बहती पानी की निर्मल धार
यही है प्रकृतिक सुन्दरता का विस्तार ईश्वर का बसाया सुन्दर संसार
आदमी अपनी कम अकल से कर रहा इसमे काट छाॅट लूट मची हो रही लकडी बेच धन की बंदर बाॅट
जानवर को मारो उसकी बेचो खाल आदमी तो सब कुछ बेच दे बस मिलना चाहिये माल
आज मर रहा हो प्रदूषण का शिकार कम अकल वाला अपने दोस्तो को रहा मार
ईश्वर ने बानाए है यह सब है तेरे साथी पर तेरी अकल ही आज तुझको है खाती
गलत बात उसको है भाती वह जल्दी अकल मे आती  नही जानता अगर तू दूल्हा तो ये बाराती
तुझको दिया ज्ञान की तू सबका बन रक्षक और सबको अपना मान इसमे ही छुपा तेरा कल्याण

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