सोचता हूॅ लिखू की पढने वाले करते होगे इंतजार पर मै भी इंसान कभी थक जाता हूॅ हार
हो जाता दुख विषाद अपने पर सवार कुंठित हो जाती प्रवाह की धार
पर यह मौसम का असर है ठहरता नही बदलता हर पहर है
कभी टूटी धार पत्थरो चट्टानो से टकराकर हुई छार छार स्तंभित हो गये विचार
फिर बिखरी बूॅदे आई साथ बन गया प्रवाह बदलता मौसम टूटने फिर बहने का बना गवाह
सब कुछ ऐसे ही चलता वलयाकार उतार चढाव जीवन मे भी आते है उसी प्रकार
उतार मे आदमी होता परेशान पर जीवन तो ऐसे ही चलता कभी फायदा कभी नुकान
हवा बहती ऐसी होकर अवरोध से बेखबर बस बहो क्यो करते हो फिकर
इस लिये बह रहा हूॅ आप से यह संवाद कह रहा हूॅ
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