" उपर वाले ने इतना ही सुन्दर जग बनाया है इतने ही गुलो से गुलशन को महकाया है"
कुछ धर्म के अंधो ने इसमे भर दी है बारूद अंगार मानवता हो रही इसकी शिकार
संसार की सुन्दरता और शांती देख लगता है जीवन कितना सुखी बनाया पर हमने ही अपने कर्मो से उसमे दुख भर दिया है अच्छे खासे जीवन का यह क्या हमने कर दिया है। किस चीज की हमे तलाश है वह कौन सा खुदा है जो सुख शांती से निराश है। अगर खुदा नही तो कौन से है उनके बंदे जो धर्म के नाम पर काम कर रहे है गंदे। सुनते है इन्होने की बहुत पढाई तो फिर क्यो धर्म के नाम पर आग है लगाई। ये क्यो इस सुन्दर दुनिया को जला रहे क्यो अच्छी खासी बसी बसाई दुनिया मे अपने गंदे विचारो की आग लगा रहे।
ऐसा नही की जल नही रहे इनके अपने हाथ पर पता नही क्यो ये समझ नही पा रहे इतनी आसान बात। दुनिया मे इनके कारण कराह है दर्द है है दर्द की आर्त पुकार पर ये धर्माध बहरे नही सुन रहे पीडित की पुकार। ये आज भी जी रहे उसी सोलहवी शताब्दी मे आज दुनिया आगे निकल गई ये फिर से लाना चाहते पुरातन पंथी समाज।
ऐसा नही यह एक समाज का हाल है पर एक जगह हिंसा है तो दूसरी जगह धर्म के दलाल है जो खरीद रहे गरीबो को और दे रहे मोल यह इनकी कमजोरी की खोल रहा पोल। इसलिये गलती नही हो रही एक ओर दूसरे समाज जो कर रहे धर्मान्तरण उनके मन मे भी है चोर।
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