Thursday, April 27, 2017


आज एक सफर विराम पा गया चलते चलते सफर का अंत आ गया। सफर हसीन था इस लिये समाज गमगीन था । हर सफर का अंत होना है कि फिर करनी है नई शुरूवात यही तो है सबसे हसीन बात । कल तक जो अपने थे वे आज पराए हो गये अतीत की तरह सब खो गये। लाखो लाखो साल से यह धरती कितने आए कितने गये और जाने है कल तक जो अपने थे आज बेगाने है। सफर अविराम है जो चले गये न उन्हे रूकना है न जो है वे रूकेगे चलना ही तो काम है। अंतिम सफर पर जाने वाले तुझे प्रणाम है।

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